मनुष्य का संघर्ष उसके जन्म के समय से प्रारम्भ हो जाता है l पहले तो गर्भ से आने को संघर्ष, बाहर आने पर चलने ,बोलने और पढ़ने के लिए संघर्ष ....संघर्ष ..... l पढ़ाई में अव्वल आने को ,नौकरी पाने ,पदोन्नति
,गृहस्थी चलाने और बुढ़ापे में लड़खड़ाते कदमो को संभालने के लिए चलता रहता है ये संघर्ष
... l जीवन समाप्त हो जाता है फिर भी चलता रहता है संघर्ष l
संघर्ष
शब्द से हमे ज़ंग (युद्ध ) की अनुभूति होती है l ये हमे न केवल आगे बढ़ने की अपितु लड़ने और उड़कर ऊचाइयों को छूने की भी हिम्मत देता है l इसी से और इसी के लिए हम जिन्दा है ,वरना तो जीवन कब अँधेरे की गर्त में, पता ही नही चलता l अक्सर जब भी मैं स्कूल से घर आती हूँ और बच्चे दौड़ कर मुझे गले से लगते है तो लगता है कोई किला फतह कर लिया मैंने... क्योंकि ये जीवन भी उन्हीं का और मैं भी ..
किसी संगीतकार ने क्या खूब कहा है -
" जिंदगी का सफर ,है ये कैसा सफर
कोई समझा नहीं,कोई जाना नहीं”
ये संघर्ष हमें कहा लेकर जायेगा , ये तो हमें भी नहीं पता ,लेकिन मेहनत की है तो एक ने एक दिन मज़िल मिल ही जाएगी l संघर्ष कभी व्यर्थ नहीं जाता ,उसका फल हमें इसी जन्म में मिलता है l
बच्चे का पग -पग बढ़ने का संघर्ष ,
दौड़ में जीता ही देता है ,
इरादा पक्का हो तो मंज़िल तक पहुंचा ही देता है
मीनू यादव
हिंदी - अध्यापिका
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